Hindi Poem

बच्चा जो लगभग साल भर का होगा
उसे उसकी मरी माँ सोई हुई लगती थी ।

बार बार चादर को माँ के मुर्दा जिस्म
से उठाता अपने ऊपर लपेट लेता।

वह हकीकत और अंधकार से अभी दूर,
अपनी मरी माँ से खेलने लगा।

यकीनन उसे रात को जब माँ
की गर्म आग़ोश नहीं मिलेगी तो
वह बिलख बिलख कर रोएगा।

उस बिन ओर छोर के दर्द
और हमारी हमदर्दी का फासला
हम कभी मिटा नहीं सकते।

– ज्योत्स्ना द्विवेदी

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